Monday, 27 September 2021

क्या मनुष्य की यही पहचान

 

सड़क किनारे देखीं श्मशान 

भूल को खुद को हुआ हैरान

                            क्या मनुष्य की यही पहचान

दो गज जमीं के लिए लड़ता है

और अंत में यही आकर मरता है

थोड़ी सी तो खुद पे शर्म करो

ले दुनिया वाले आपका नाम 

कुछ तो ऐसी करम करो

 तोड़ देते हो रिश्ते नाते

क्या काम आता है तेरे जाते

भुला कर तुम अपनों को

मारते उनके सपनो को

बनाना चाहते अपनी पहचान

भूल को खुद को हुआ हैरान

               मैं पूछता तुमसे क्या करोगे बना कर अपनी झुठी पहचान

               जब आप गिरो दूसरे की नजरो में

               ख़तम हो जाये आपकी शान

               जीते जी लेते अपनों की जान

सड़क किनारे देखीं श्मशान 

भूल को खुद को हुआ हैरान, हुआ हैरान

             क्या मनुष्य की यही पहचान...

              क्या मनुष्य की यही पहचान!!!!!!!!!!!    

Friday, 19 February 2021

मेरा प्यार मेरे पिता

आज मैं अपनी यह लेखनी अपने पिता को समर्पित करता हूँ  जिन्होंने मुझे अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया



पिता के प्यार में , माँ के आँचल के छाव में बढ़ने वाला इंसान हु मैं
उठ गया साया जिसके सर से ऐसा बदनसीब इंसान हु मै
जिस पापा ने नन्हे कदमों को चलना सिखाया
जिसने जिन्दगॆ मे आगे बढ़ना सिखाया.
उस भगवान का जनम दिया हुआ इंसान हु मै
उठा दिया साया मेरा सर से ऐसे भगवान  का
जिंदगी का मारा सुनसान हु मै
कैसे मै  भूल जाऊ प्यार उस भगवान् का
जिसने कभी खाली हाथ होते भी एहसास ना होने दिया
अपनी जिंदगी खाली कर मुझे कभी न रोने दिया
सोचा था कभी मौका मुझे भी मिलेगा पूजने को भगवन को
मै ऐसा बदनसीब न मिला मौका मुझे पूजन को भगवान का
तनहा दिल और तनहा सफ़र है...
जो थे सर पे हाथ रखने वाला
न  जिंदगी में वो हमसफ़र है... 
न  जिंदगी में वो हमसफ़र है
तनहा दिल और तनहा सफ़र है...

तन्हाई मुझे खा जाती है 
जब आपकी याद आती है
आपसे मिलने को मेरी नजरे तरस जाती है
छुप छुप के मै रोता हु 
जब मै तन्हा अकेला सोता हू
पापा अब आप  आ भी जाओ ये जो मेरी आँखों में नमी है
याद दिलाती जैसे जिंदगी में आपकी कमी है
जिंदगी में आपकी कमी है
अब आप आ भी जाओ