समय बदलता गया जज्बात बदलते गए
युहीं हम समय के बोझ तले दबते गए
ये ना ही मेरी जिंदगी का अंत था
ना ही मेरी जवानी का अंत था
ये तो शायद हमारे द्वारा लिखी गयी कहानी का अंत था ...... कहानी का अंत था
जिंदगी का कुछ पता नहीं इंसान कब सब खोता है
तनहा अकेला बैठकर तन्हाई के साथ साथ रोता है
युहीं ना हम लाचार हुए जिंदगी की कुछ मज़बूरी थी
जिसने हमरे सपनो को तोडा कुछ ऐसी मज़बूरी थी........ कुछ ऐसी मजबूरी थी
सच्चाई के पन्नो से पर्दा कौन उठाएगा
दबी हुई ज़ख्मो को बाहर कौन लाएगा
बहते हुए आसुओ को कौन शांत कराएगा
ये समय का चक्र ना जाने हमे कहा ले जायेगा ...... हमे कहा ले जायेगा