मैं रास्ते का मुसाफिर चल रहा था अकेला
दिखी मुझे ऐसी भीड़ लगा हो जैसा कोई मेला
मेरे कदम बढ़ने लगे रुकने को ना वे तैयार
मैं भी सोचा देख लू रास्ते का वो मेला
मैं रास्ते का मुसाफिर चल रहा था अकेला
पास गया तो देखा बच्चों की वो चिख पुकार
लग रहा था जैसा घर में मच गया हो हाहाकार
चल बस था उसका पिता उजर गया था संसार बच्चों का वो रोना गया मुझे झकझोर
हृदय विदारक हो गई मेरी न दिखी कोई आस लग रहा था ऐसे मुझे जैसा मैं बन गया जिंदा लाश
जैसे मैं बन गया जिंदा लाश......... आँखों में आँसू लिए माँ पकड़ बैठी थी कोना
माँ की ममता सुनी पड़ गई देख के बचाओ का रोना
उजर गया था उसका संसार जिंदगी हो चली बेकार
कौन बसाए उनका संसार....कौन बसाए उनका संसार
मैं रास्ते का मुसाफिर चल रहा था अकेलादिखी मुझे ऐसी भीड़ लगा हो जैसा कोई मेला
मैं रास्ते का मुसाफिर चल रहा था अकेला........